हलकी ज़रा फुहार थी
भिगो गयी सो तन बदन
भीगने की आस में
भीगने की आस में
बदरा को ताकता है मन
बिजली कड़क, बादल गरज
धूल, अंधड़ का वो रेला
संगीत मध्हम लौह का
संगीत मध्हम लौह का
टीन पर नाचती बूंदों का मेला
टप-टप टपक, छन-छन छनक
क्यूँ रुक गयी पगली मचल,
ये मन है तेरी चाह में
ये मन है तेरी चाह में
रुक जा यहीं, अभी ना चल
वादा तो ये कर जा ज़रा
आयेगी फिर सौंधी ज़मीन पर
बैठूं यहीं तेरी आस में
बैठूं यहीं तेरी आस में
थिरकना फिर मेरी छत की टीन पर!
प्रियंका सिंह