Wednesday 30 January 2013

फुहार










हलकी ज़रा फुहार थी
भिगो गयी सो तन बदन
भीगने की आस में 
बदरा को ताकता है मन

बिजली कड़क, बादल गरज
धूल, अंधड़ का वो रेला
संगीत मध्हम लौह का
टीन पर नाचती बूंदों का  मेला

टप-टप टपक, छन-छन छनक
क्यूँ रुक गयी पगली मचल,
ये मन है तेरी चाह में
रुक जा यहीं, अभी ना चल

वादा तो ये कर जा ज़रा 
आयेगी फिर सौंधी ज़मीन पर
बैठूं यहीं तेरी आस में 
थिरकना फिर मेरी छत की टीन पर!

प्रियंका सिंह
 

साये










साथ जो साये बन चलते रहे,
पड़ी धूप तो गुपचुप पिघलते रहे,

बन के कालिख लगे कभी हम ही पर,
कभी गुबार ए धुआं बन हमे निगलते रहे !!

प्रियंका सिंह