Saturday 29 May 2021

वर्क फ्रोम होम










वर्क फ्रोम होम
बड़ा कष्टकारी है
लाइलाज बीमारी है।
सुबह आठ से
रात के दस तक,
एक छोटे से
कोने में दफ्तर।
कुर्सी से भैया
ब्याह हो गया,
अब तो साल
सवा हो गया।
ना कहीं
जाने देती,
ना किसी को
पास आने देती।
सुबह से मीटिंग,
कांफ्रेंस, काॅल
बस, बुरा
हो गया हाल।
चौदह घंटे
काम लेते हैं,
तनख्वाह आठ घंटे
की देते हैं।
ऊपर से
टार्गेट का प्रेशर,
डांट ऐसे पड़े
जैसे कोई फ्रेशर।
इन्क्रिमेंट की तो
बात मत करो,
आपको, आपकी
नजरों में गिरा देंगे,
साल भर के काम को
कूड़ा बता देंगे।
अरे! कंपनी की
बैंड बजी पडी है,
आपको इन्क्रिमेंट
की पडी है!

क्या क्लर्क, क्या अफसर, क्या टीचर
सबका यही हाल है,
मजबूरी है साहब
पापी पेट का सवाल है।
टीचर जो बच्चों का
भविष्य बना रहे हैं,
वर्क फ्रोम होम में
सज़ा पा रहे हैं।
सुबह शाम आँनलाइन
पढ़ा रहे हैं,
इग्ज़ाम ले रहे हैं,
वर्कशाँप करा रहे हैं,
दोगुना काम कर
आधी तनख्वाह पा रहे हैं।
क्या ग़ज़ब
बेईमानी हो रही है
वर्क फ्रोम होम के नाम पर
मनमानी हो रही है।

यही है आपदा में अवसर
निकाल दो कर्मचारी का कचूमर,
बना दो उसे बंधुआ मजदूर
बता दो कोरोना का क़ुसूर।
मगर खामोश! जो आवाज उठाई,
यहां बर्दाश्त नहीं सच्चाई।
आधी तनख्वाह
तो पा रहे हो,
देश का भविष्य
बना रहे हो।
पैसा तो
हाथ का मैल है,
आज नहीं तो
कल मिल जाएगा।
वर्क फ्रोम होम
का लुत्फ उठाओ,
ये मौका बार-बार
नहीं आएगा।
वर्क फ्रोम होम!
वाह!

~ प्रियंका सिंह 

Sunday 16 May 2021

ये मंजर




वक़्त की पेशानी पर ये मंज़र लिखा जाएगा
ना भूलना इसे वर्ना ये वक़्त लौट आएगा

दर्द का ये मंज़र देखा जाता नहीं
दूर तलक उजियारा नज़र आता नहीं

मौत को किस ने यूँ खुला छोड़ा है
वक़्त साँसों के पास थोड़ा है

भरे श्मशान कब्रिस्तान, कतार लाशों की
गंगा माँ भी है रोती देख अंबार लाशों के

हर रोज़ दम तोड़ती है इंसानियत
चारों तरफ पसरी हुई हैवानियत

लाशों पर भी इंसान कारोबार कर रहा
ज्यों किसी की लाश पर गिद्ध पल रहा

तख़्त पर जो ये हुक्मरान बैठे हैं
शायद खुद को ये खुदा मान बैठे हैं

जिंदगियों से ज्यादा सियासत की पड़ी है
भूले हैं यही तो इम्तेहान की घड़ी है

कुछ भी भुलाएँ ना ये मौतें भूल पाएंगे
इतिहास में ये ख़ूनी पन्ने किए दर्ज जाएंगे

वक़्त की पेशानी पर ये मंज़र लिखा जाएगा
ना भूलना इसे वर्ना ये वक़्त लौट आएगा

- प्रियंका सिंह