Monday 23 September 2019

तन्हाई

                      








दिल तन्हा, दिन तन्हा, रात और तन्हा,
सफ़र तन्हा, ये चुप तन्हा, बात और तन्हा ।

तन्हाई का आलम है कुछ इस क़दर,
जुदाई है तन्हा, मुलाक़ात और तन्हा ।


ख़ामोश हर इंसान शोरगुल में दबा,
मौत है तन्हा, हयात और तन्हा ।


ख़ाली हाथ आऐं, ख़ाली ही जाऐं,
ज़िंदगी में सैंकड़ों सौग़़ात और तन्हा ।


तेरे रंज-ओ-ग़म में वो शामिल नहीं,
तेरा ग़म तन्हा, फरहत और तन्हा ।


सिर्फ गुफ़्तगू के कोई मायने नहीं,
हैं महफिल भरी, ख़यालात और तन्हा ।


हज़ारों ख़्वाहिशें हैं दिल में दबीं,
सिर्फ रिश्ते नये, जज़़्बात और तन्हा ।


दामन में उसके सितारे भी नहीं,
है चांद तन्हा, रात और तन्हा ।


दिल तन्हा, दिन तन्हा, रात और तन्हा,
सफर तन्हा, ये चुप तन्हा, बात और तन्हा ।


प्रियंका सिंह


*हयात- जिंदगी
 रंज-ओ-गम- दुख
 फरहत- खुशियां
 गुफ़्तगू- बातचीत