दिल तन्हा, दिन तन्हा, रात और तन्हा,
सफ़र तन्हा, ये चुप तन्हा, बात और तन्हा ।
तन्हाई का आलम है कुछ इस क़दर,
जुदाई है तन्हा, मुलाक़ात और तन्हा ।
ख़ामोश हर इंसान शोरगुल में दबा,
मौत है तन्हा, हयात और तन्हा ।
ख़ाली हाथ आऐं, ख़ाली ही जाऐं,
ज़िंदगी में सैंकड़ों सौग़़ात और तन्हा ।
तेरे रंज-ओ-ग़म में वो शामिल नहीं,
तेरा ग़म तन्हा, फरहत और तन्हा ।
सिर्फ गुफ़्तगू के कोई मायने नहीं,
हैं महफिल भरी, ख़यालात और तन्हा ।
हज़ारों ख़्वाहिशें हैं दिल में दबीं,
सिर्फ रिश्ते नये, जज़़्बात और तन्हा ।
दामन में उसके सितारे भी नहीं,
है चांद तन्हा, रात और तन्हा ।
दिल तन्हा, दिन तन्हा, रात और तन्हा,
सफर तन्हा, ये चुप तन्हा, बात और तन्हा ।
प्रियंका सिंह
फरहत- खुशियां
गुफ़्तगू- बातचीत
तन्हाई का आलम है कुछ इस क़दर,
जुदाई है तन्हा, मुलाक़ात और तन्हा ।
ख़ामोश हर इंसान शोरगुल में दबा,
मौत है तन्हा, हयात और तन्हा ।
ख़ाली हाथ आऐं, ख़ाली ही जाऐं,
ज़िंदगी में सैंकड़ों सौग़़ात और तन्हा ।
तेरे रंज-ओ-ग़म में वो शामिल नहीं,
तेरा ग़म तन्हा, फरहत और तन्हा ।
सिर्फ गुफ़्तगू के कोई मायने नहीं,
हैं महफिल भरी, ख़यालात और तन्हा ।
हज़ारों ख़्वाहिशें हैं दिल में दबीं,
सिर्फ रिश्ते नये, जज़़्बात और तन्हा ।
दामन में उसके सितारे भी नहीं,
है चांद तन्हा, रात और तन्हा ।
दिल तन्हा, दिन तन्हा, रात और तन्हा,
सफर तन्हा, ये चुप तन्हा, बात और तन्हा ।
प्रियंका सिंह
*हयात- जिंदगी
रंज-ओ-गम- दुखफरहत- खुशियां
गुफ़्तगू- बातचीत