Friday 24 February 2023

रात की कविता

एक नन्हीं कविता
रात दबे पाँव 
आई मेरे सिरहाने
धीरे से बोली कान में
आओ मुझे संवार दो
मुझे पृष्ठ पर उतार दो

मैं हल्की उनींदी
हटाती रही उसे 
जा री ओ नन्हीं
नींद आने को है
कल सुबह आना
तू भी सो जा ना

देर तलक
हाथ पकड़ वो
बैठी रही वहीं
मेरा माथा सहला
चुंबन गाल पर टिका
कब गई नहीं पता

सुबह वो लौटी नहीं 
उजाले में खो गई
शायद आये आज रात
चाँदनी रथ पर बैठ
परियों की तरह
अब ना जाने दूंगी
ओ नन्ही कविता...

~प्रियंका सिंह