कविता जन्म लेती है
मन की बंजर ज़मीन पर,
नेह का अमृत पड़े
या अश्रु विषाद के,
दोनों ही सींच जाते
मन की धरती को।
फूटती है जैसे कोपल
जैसे जन्म शिशु का,
कविता के रचयिता का
वो मातृ सुख,
कुछ पीड़ा से भरा,
कुछ उल्लास से परिपूर्ण।
मन देखता कविता को
जन्मते, बढ़ते, लहलहाते,
वो ज़मीन अब बंजर नहीं
कविता ने नरमा दी मिट्टी,
उगने लगी हैं नई कोपलें
कुछ और कविताओं की।
~ प्रियंका सिंह