बहते हुये पानी पे क्यों अकड़ के खड़ी हो
क्यों अपने खयालात यूं जकड़ के खड़ी हो,
बह जाओ, मचल जाओ, लहर जाओ तुम भी यूं ही,
मिल जाओ इस रवानी में क्यों डर के खड़ी हो।
शहर की तंग गलियों में आब ए रवां नहीं होते,
इस आब ओ हवा में भी क्यों दिल जकड़ के खड़ी हो।
आबशार ने आफताब को रोशन हैं कर डाला,
तुम शहर के चौंधे को ही पकड़ के खड़ी हो।
खुल जाओ, खिल जाओ, लो पानी का इक बोसा
ज़रा अक्स तो देखो, कैसे संभल के खड़ी हो।
पानी ने तो सारे बंघन हैं खोल डाले,
खोलो बेबाकी के सिरे क्यों पकड़ के खड़ी हो।
प्रियंका सिंह
बह जाओ, मचल जाओ, लहर जाओ तुम भी यूं ही,
मिल जाओ इस रवानी में क्यों डर के खड़ी हो।
शहर की तंग गलियों में आब ए रवां नहीं होते,
इस आब ओ हवा में भी क्यों दिल जकड़ के खड़ी हो।
आबशार ने आफताब को रोशन हैं कर डाला,
तुम शहर के चौंधे को ही पकड़ के खड़ी हो।
खुल जाओ, खिल जाओ, लो पानी का इक बोसा
ज़रा अक्स तो देखो, कैसे संभल के खड़ी हो।
पानी ने तो सारे बंघन हैं खोल डाले,
खोलो बेबाकी के सिरे क्यों पकड़ के खड़ी हो।
प्रियंका सिंह
Nice..
ReplyDeleteThanks
DeleteBeautiful n inspiring
ReplyDeleteThanks
DeleteVery nice and wonderful picture at Laxman jhula
DeleteThanks
Deleteअति सुंदर लाइनें
ReplyDeleteThanks
DeleteSunder
ReplyDeleteThanks
DeleteBeautiful lines...
ReplyDeleteThanks dear
Deletevery nice👍
ReplyDeleteThanks
DeleteAwesome line didi
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