यही था वो मौसम जब तुम गये थे,
यूं ही रास्तों में टेसू बिखरे हुए थे,
शाख़ों पर कुछ पत्ते पुराने कुछ नए थे,
जो टूटे, संग आँधियों के उड़ गए थे।यही था वो रास्ता जहां आख़िरी मिले थे,
यहीं से तुम किसी मंज़िल को चले थे,
ना मकसद पता, ना कोई वादा किए थे,
टूटे ख़्वाब, आंखों में आब दे गए थे।
यही था वो मंज़र, तमन्नाएं यही थीं,
वो बदलते मौसम की हवाएँ यही थीं,
टीस बन बिखरे टेसू आंख सुर्ख़ कर गए थे,
आती गर्मी में रिश्तों को बर्फ़ कर गए थे।
कभी जो लौटो, तो इसी मौसम में आना,
हो सके तो लेना वो रास्ता पुराना,
बरस-दर-बरस जो तुम्हारी याद दिलाते,
तोहफ़े में वो कुछ बिखरे टेसू ले आना।
~प्रियंका सिंह
टेसू- पलाश के फूल
मकसद- उद्देश्य
आब- पानीमंज़र- नज़ारा
तमन्नाएं- इच्छायें
टीस- दर्द
सुर्ख़- लाल
बरस-दर-बरस- हर वर्ष
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