Sunday 16 May 2021

ये मंजर




वक़्त की पेशानी पर ये मंज़र लिखा जाएगा
ना भूलना इसे वर्ना ये वक़्त लौट आएगा

दर्द का ये मंज़र देखा जाता नहीं
दूर तलक उजियारा नज़र आता नहीं

मौत को किस ने यूँ खुला छोड़ा है
वक़्त साँसों के पास थोड़ा है

भरे श्मशान कब्रिस्तान, कतार लाशों की
गंगा माँ भी है रोती देख अंबार लाशों के

हर रोज़ दम तोड़ती है इंसानियत
चारों तरफ पसरी हुई हैवानियत

लाशों पर भी इंसान कारोबार कर रहा
ज्यों किसी की लाश पर गिद्ध पल रहा

तख़्त पर जो ये हुक्मरान बैठे हैं
शायद खुद को ये खुदा मान बैठे हैं

जिंदगियों से ज्यादा सियासत की पड़ी है
भूले हैं यही तो इम्तेहान की घड़ी है

कुछ भी भुलाएँ ना ये मौतें भूल पाएंगे
इतिहास में ये ख़ूनी पन्ने किए दर्ज जाएंगे

वक़्त की पेशानी पर ये मंज़र लिखा जाएगा
ना भूलना इसे वर्ना ये वक़्त लौट आएगा

- प्रियंका सिंह

6 comments:

  1. बेहद मर्मस्पर्शी और हालात को बयां करने वाली कविता।

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  2. 👍👍👍👍👍Hit on the nail...Great

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