वक़्त की पेशानी पर ये मंज़र लिखा जाएगा
ना भूलना इसे वर्ना ये वक़्त लौट आएगा
दर्द का ये मंज़र देखा जाता नहीं
दूर तलक उजियारा नज़र आता नहीं
मौत को किस ने यूँ खुला छोड़ा है
वक़्त साँसों के पास थोड़ा है
भरे श्मशान कब्रिस्तान, कतार लाशों की
दर्द का ये मंज़र देखा जाता नहीं
दूर तलक उजियारा नज़र आता नहीं
मौत को किस ने यूँ खुला छोड़ा है
वक़्त साँसों के पास थोड़ा है
भरे श्मशान कब्रिस्तान, कतार लाशों की
गंगा माँ भी है रोती देख अंबार लाशों के
हर रोज़ दम तोड़ती है इंसानियत
चारों तरफ पसरी हुई हैवानियत
लाशों पर भी इंसान कारोबार कर रहा
ज्यों किसी की लाश पर गिद्ध पल रहा
तख़्त पर जो ये हुक्मरान बैठे हैं
शायद खुद को ये खुदा मान बैठे हैं
जिंदगियों से ज्यादा सियासत की पड़ी है
भूले हैं यही तो इम्तेहान की घड़ी है
कुछ भी भुलाएँ ना ये मौतें भूल पाएंगे
इतिहास में ये ख़ूनी पन्ने किए दर्ज जाएंगे
वक़्त की पेशानी पर ये मंज़र लिखा जाएगा
ना भूलना इसे वर्ना ये वक़्त लौट आएगा
- प्रियंका सिंह
Nice lines
ReplyDeleteWell said ... Beautiful
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी और हालात को बयां करने वाली कविता।
ReplyDeleteVERY NICE 👏👏👏
ReplyDeleteVery nice
ReplyDelete👍👍👍👍👍Hit on the nail...Great
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