एक नन्हीं कविता
रात दबे पाँव
आई मेरे सिरहाने
धीरे से बोली कान में
आओ मुझे संवार दो
मुझे पृष्ठ पर उतार दो
मैं हल्की उनींदी
हटाती रही उसे
जा री ओ नन्हीं
नींद आने को है
कल सुबह आना
तू भी सो जा ना
देर तलक
हाथ पकड़ वो
बैठी रही वहीं
मेरा माथा सहला
चुंबन गाल पर टिका
कब गई नहीं पता
सुबह वो लौटी नहीं
उजाले में खो गई
शायद आये आज रात
चाँदनी रथ पर बैठ
परियों की तरह
अब ना जाने दूंगी
ओ नन्ही कविता...
~प्रियंका सिंह
So sweet
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